जावेद अख्तर: ‘मनुस्मृति में ये सही है कि 17 साल की लड़की मां बन जाए’, गुजरात कोर्ट की टिप्पणी पर भड़के जावेद अख्तर
गुजरात के एक मामले में एक न्यायाधीश ने एक वकील को मनुस्मृति की पाठशाला में ज्ञान दिया है, और इसके परिणामस्वरूप एक 17 साल की लड़की जो बलात्कार पीड़िता थी, वह मां बनने के लिए अबॉर्शन की मांग कर रही है। इस मामले पर जवेद अख्तर ने भी अपनी राय रखी है और न्यायाधीश को आलोचना की है।
मानवीय इतिहास में, पुराने समयों में लड़कियों के लिए कम उम्र में विवाह करना और 17 साल से पहले मां बनना काफी सामान्य रहा है। गुजरात उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने इस मामले में एक अदालती श्रेणी के बच्चे से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए इस बात को कहा है। इस संबंध में वकील से मनुस्मृति के बारे में ज्ञान प्राप्त करने का निवेदन किया गया था। इसके अलावा, न्यायाधीश ने राजकोट के सिविल अस्पताल के डॉक्टरों
के राय भी मांगी है जिसमें यह जांचा जाएगा कि क्या नाबालिग लड़की और उसके सात महीने के गर्भ के साथ गर्भपात करना उचित है या नहीं। इस घटना को लेकर जावेद अख्तर, एक राइटर और कवि, ने भी अपना विचार रखा है।
जावेद अख्तर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है, “गुजरात हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने 17 साल से कम उम्र की बलात्कार पीड़िता को ज्ञान दिया है कि मनुस्मृति के अनुसार यह सही है कि एक लड़की 17 साल की उम्र में मां बन जाए। मुझे आश्चर्य है कि क्या राष्ट्रीय महिला आयोग को इसके बारे में कुछ कहना नहीं है।”
जावेद अख्तर के ट्वीट के साथ-साथ, आम जनता भी अपने विचार प्रकट कर रही है। इस मामले में कोर्ट ने पीड़िता की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी है और कोर्ट को गर्भपात के लिए आदेश देने के संबंध में राय मांगी है। इस मामले की अगली सुनवाई 15 जून को होगी।
जवेद अख्तर के बयान पर भड़के लोग, गुजरात कोर्ट की टिप्पणी को लेकर मनुस्मृति में ये सही
जावेद अख्तर के ट्विटर पर दिए गए बयान ने एक बहुत बड़ा विवाद उठाया है और लोगों में उग्रता को प्रबल बढ़ा दिया है। उनका दावा है कि गुजरात हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मनुस्मृति के अनुसार 17 साल की लड़की को मां बनने की अनुमति दी है, जिसे वह आश्चर्यजनक समझते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग को भी इस मामले पर राय रखने के लिए आवाहन नहीं किया होने पर सवाल उठाया है।
इस मामले के पीछे एक गुजरात कोर्ट की टिप्पणी है जिसमें एक न्यायाधीश ने वकील को मनुस्मृति पढ़ने का सुझाव दिया है। यह मामला एक 17 साल की लड़की के संबंध में है जो बलात्कार की पीड़िता बन गई है। उसकी वकील ने उसके गर्भपात की मांग की है। इस मामले में न्यायाधीश ने सवाल किया है कि क्या एक नाबालिग लड़की और उसके सात महीने के गर्भ के साथ गर्भपात करना
स मामले में जवेद अख्तर ने ट्विटर पर अपनी बात रखी है और इस मामले पर व्यापक विचार-विमर्श किया है। उन्होंने अपने ट्वीट में व्यक्त किया है कि गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने मनुस्मृति के आधार पर ऐसा बयान दिया है जो बहुत संदिग्ध है। उन्हें चौंकाने वाला है कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले के बारे में कुछ नहीं कहा है। यह उनकी प्रशंसा नहीं है और उन्हें संदेह है कि इस मामले में सामाजिक न्याय और महिला सुरक्षा की पहल को नजरअंदाज किया गया है।
जवेद अख्तर के बयान पर भड़के लोगों के मध्य विभाजन हो रहा है। कुछ लोग उनके बयान का समर्थन कर रहे हैं, जबकि कुछ लोग उनके खिलाफ उठ रहे हैं। इस मामले में जनता विभाजित है क्योंकि इसका मुद्दा बहुत संवेदनशील और विवादास्पद है। बहुत से लोगों को जवेद अख्तर का बयान विवादास्पद और गलत लग रहा है,
जवेद अख्तर के बयान पर भड़के लोग, गुजरात कोर्ट की टिप्पणी को लेकर
जवेद अख्तर के बयान पर भड़के लोगों का मुद्दा एक महत्वपूर्ण विषय है जिसने सामाजिक और सांस्कृतिक विवादों को उजागर किया है। वह लोग जो जवेद अख्तर के बयान का समर्थन कर रहे हैं, उनका मानना है कि वह महिला सुरक्षा और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर संवेदनशील तरीके से ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। उनके अनुसार, गुजरात कोर्ट की टिप्पणी विचारशीलता और धार्मिकता के संघर्ष को दर्शाती है, जिससे नाबालिग लड़की की हक़ीक़त और सुरक्षा को नुकसान पहुंच सकता है।
दूसरी ओर, उन लोगों का मत है जो जवेद अख्तर के बयान का विरोध कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि जवेद अख्तर ने अपने बयान के माध्यम से गुजरात कोर्ट के न्यायाधीश को आरोपित किया है और उन्हें बदनाम करने की कोशिश की है। उन्हें यह भी आपत्तिजनक लग रहा है कि जवेद अख्तर ने राष्ट्रीय
महिला आयोग को भी इस मामले पर राय रखने के लिए निहित किया है, लेकिन आयोग को इस मुद्दे पर राय रखने की ज़रूरत नहीं है। वे इस मामले के बारे में विचार-विमर्श कर सकते हैं लेकिन आयोग की उपस्थिति इसका निर्णय नहीं है।
इस विवाद में सामाजिक मीडिया और जनता के बीच भी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ लोग इसे महिला सुरक्षा और संविधानिक मुद्दे के रूप में देख रहे हैं और जवेद अख्तर के बयान का समर्थन कर रहे हैं। वे यह मानते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान देना हमारे समाज की ज़िम्मेदारी है और गुजरात कोर्ट के न्यायाधीश की टिप्पणी उसे गलत दिशा में ले जा सकती है।
वहीं, कुछ लोग इस मामले को धार्मिक और संस्कृतिक मुद्दे के रूप में देख रहे हैं और जवेद अख्तर के बयान का विरोध कर रहे हैं। उन्हें यह लगता है कि गुजरात कोर्ट के न्यायाधीश ने मनुस्मृति के अनुसार फैसला दिया है
संघर्षों को दर्शाता है। उन्हें लगता है कि धार्मिक मामलों में न्यायाधीशों को स्वतंत्रता और आपातकालीन प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए।
इस विवाद को लेकर समाज में अलग-अलग राय होना स्वाभाविक है और इसका जायज़ा लेते हुए विचारशील विमर्श और विपक्षी मतभेद महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, सामाजिक मुद्दों को लेकर उठने वाले विवादों में सामंजस्य और संविधानिक दृष्टिकोण सुरक्षा के साथ मेल खाना आवश्यक है। सभी पक्षों को सामान्य मानवीय मूल्यों, महिला सुरक्षा और न्याय की ज़रूरत को समझने और मान्यता देने की आवश्यकता है।
यह विवाद एक बड़ी सामाजिक और संवैधानिक चर्चा को जगाने का संकेत है, और इसके बारे में उचित रूप से विचार-विमर्श करने की ज़रूरत है। समाज को इस मुद्दे पर विचार करते हुए सामाजिक सुधार के मार्ग पर चलना चाहिए ताकि महिलाओं की सुरक्षा और समाजिक न्याय की पहलें बढ़ाई जा सकें।
इस मामले में जावेद अख्तर के बयान ने सामाजिक मीडिया और लोगों के बीच एक तीव्र विचार-विमर्श को उठाया है। उनका ट्वीट महिला सुरक्षा और न्याय के मुद्दे पर सवाल उठाता है और इसे एक गंभीर समाजिक मुद्दा साबित करता है।
इस विवाद को लेकर लोगों के विचार भिन्न-भिन्न हैं। कुछ लोग जवेद अख्तर के समर्थन में हैं और उन्हें लड़कियों के अधिकार और स्वतंत्रता की रक्षा करने की आवश्यकता है। उनके मुताबिक, यह न्यायाधीश की टिप्पणी मानवीय अधिकारों और महिला सुरक्षा के मूल्यों के खिलाफ है।
वहीं, कुछ लोग उनके खिलाफ हैं और मान्यता देते हैं कि समाज के नियमों और विधान के अनुसार ही न्यायाधीशों को फैसला देना चाहिए। उनके मुताबिक, धार्मिक मामलों में धारा 375 के अनुसार 17 साल की उम्र में लड़की मां बनने की अनुमति होती है, और न्यायाधीश ने इसी नियम का पालन किया है।